Success Story : दिव्यांग व्यक्तियों को लंबे समय तक कमतर आंका जाता रहा है. जिसके चलते कई प्रतिभाशाली दिव्यांग लोगों के सपने बिखर गए. कुछ दिव्यांग लोगों ने अपने जिद और हौसले से यह साबित किया है कि उन्हें भी किसी सामान्य व्यक्ति से कम नहीं हैं. आज आपको ऐसे ही एक लड़के की कहानी बताने वाले हैं. जिसने दृष्टिबाधित होने के चलते IIT-JEE परीक्षा में नहीं बैठने दिया गया. कार्तिक साहनी ने तीन बार प्रयास किया. लेकिन हर बार उन्हें दृष्टिबाधित बताकर उन्हें आईआईटी जेईई परीक्षा में बैठने से रोक दिया गया. आखिरकार उन्होंने अमेरिका जाने का फैसला कर लिया.
मध्यमवर्गीय परिवार से आते थे कार्तिक
मूलत: दिल्ली के लाजपत नगर के रहने वाले कार्तिक साहनी जन्म से दृष्टिबाधित हैं. उन्होंने 10वीं के बाद जब आगे साइंस विषय पढ़ना तय किया तो कई मुश्किलें आई. सबसे पहले तो सीबीएसई को यह समझाने में खासा वक्त लगा कि एक नेत्रहीन छात्र भी साइंस जैसे प्रैक्टिकल विषय की पढ़ाई कर सकता है. उन्होंने दिल्ली के डीपीएस आरके पुरम से इंटरमीडिएट की पढ़ाई की और स्पेशल कैटेगरी में ऑल इंडिया टॉपर बने. उन्होंने 12वीं में 96% अंक हासिल करके साबित किया कि प्रतिभा आंखों के रोशनी की मोहताज नहीं है.
कार्तिक साहनी एक मध्यमपरिवार से आते थे. उनके पिता रविंदर साहनी एक बिजनेसमैन और मां इंदु साहनी हाउसवाइफ हैं. साहनी ने एक इंटरव्यू में कहा था कि हर एक स्तर पर कठिन फैसले लेना हमेशा आसान रहा, उसे लागू करने के मुकाबले.
लगातार तीन साल जेईई में बैठने की कोशिश की
कार्तिक साहनी ने साल 2010 से लेकर 2013 तक लगातार तीन बार IIT-JEE में बैठने की कोशिश की. लेकिन हर बार उन्हें नियम का हवाला देकर परीक्षा देने से रोक दिया गया. उन्हें बताया गया कि नेत्रहीन छात्रों के लिए इस परीक्षा में बैठने का प्रावधान नहीं है. हालांकि इसके बाद भी उन्होंने उम्मीद नहीं खोई और विदेश के विश्वविद्यालयों में आवेदन किया.
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में लिया दाखिला
कार्तिक साहनी को आईआईटी जेईई में नहीं बैठने दिया गया तो उन्होंने विदेशी यूनिवर्सिटीज में आवेदन किया. फाइनली मार्च 2013 में उन्हें अमेरिका की प्रतिष्ठित स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए 100 फीसदी स्कॉलरशिप प्रदान की.
सॉफ्टवेयर इंजीनियर और स्टार्टअप को-फाउंडर
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग में बैचलर और पीजी की पढ़ाई की. इसके बाद माइक्रोसॉफ्ट में बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर काम किया. उन्होंने साल 2016 में अपने दोस्तों के साथ मिलकर I-Stem नाम का एक स्टार्टअप शुरू किया. लिंक्डइन प्रोफाइल के अनुसार वह आजकल अमेरिका के वाशिंगटन में रहते हैं.
कई पुरस्कारों से हो चुके हैं सम्मानित
कार्तिक साहनी दिव्यांगों के लिए कई साल से काम कर रहे हैं. इसके लिए उन्हें कई पुरस्कार और सम्मान मिल चुके हैं. साल 2018 में उन्हें भारत सरकार द्वारा दिव्यांग व्यक्तियों के सशक्तीकरण के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. यह पुरस्कार सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की ओर से राष्ट्रपति के हाथों प्रदान किया जाता है. इसके अलावा यूनीसेफ और गूगल की तरफ से भी कई सम्मान मिल चुके हैं.
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