श्री पद्मनाभ भगवान मन्दिर निर्माण का सम्पूर्ण ऐतिहासिक इतिहास

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श्री एकलिंग नाथजी नमः.                               ! ! श्री गुणेशायजी नमः ! !                             श्री पद्मनाभजी नमः

                           श्री पद्मनाभजी भगवान मन्दिर तिर्थ स्थान- पलासमा (सायरा) जिला-उदयपुर (राजस्थान)                                                       -: श्री पद्मनाभ भगवान मन्दिर निर्माण का सम्पूर्ण ऐतिहासिक इतिहास :- 

Shree Padamnathji Bhagwan Palasma
(श्री महाविष्णुजी प्रथम अवतार श्री पद्मनाभजी भगवान)

                      

                          शान्ताकार भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेश्वरम् विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम् ।                                                     लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम् ।।

मेवाड़ः- चितौड़गढ़ महारावल हुजुर श्री समरसिंहजी मेवाड़ विक्रम.सं.1329-1358 सन् 1272- 1301 के राजपुरोहित श्री                    प्रभुजी जोशी पुत्र श्री गंगाधरजी जोशी

> गोत्र विष्णु, शाखा – माध्यनी, पंचपरवर, अखावाक-वशं, गुणेश – गागरिया क्षेत्रपाल यर्जुवेद गुरू खेत्र नखलाल धुन्धमाल गुणेश कुलदेवी माता अम्बाजी नन्दी गोमती, पिताम्बर धोती, नगोरा राणजीत, गोडो – सावकरण निशान पवन भेरू कालाजी इस कुल के ब्राह्मण गौतम तलाब सिद्धपुर-गुजरात में रहते थे। वहाँ पर (1) विष्णु ऋषी (2) हरदेव ऋषी (3) विद्याधर ऋषी (4) पुरूषोतम ऋषी (5) महाकरणजी (6) हरिशंकरजी यह सिद्धपुर में ऋषी हुए। हरिशंकरजी राजा रोहीभाणजी के समय में सिद्धपुर से आये रवाना होकर मोडासा आये। हरिशंकरजी के पुत्र गंगाधरजी व उनकी धर्मपत्नी अमीता देवी गढ़ चित्तौड़ में आये। वहाँ पर राजघराने में पुरोहित कार्य करते थे। फिर उनके बाद प्रभुजी जोशी भाई पिताम्बरजी जोशी महारावल हुजुर श्री समरसिंहजी मेवाड़ के कार्यकाल में गढ़ चित्तौड़ बहुत बडा यज्ञ किया (जग किया) उसके बाद महारावल का प्रायश्चित उतारा फिर वहाँ से रवाना होकर हरिद्वार (गंगाजी) यात्रा पर निकल गये। हरिद्वार में पवित्र गंगा का स्नान कर वापस पैदल-पैदल गढ़ चित्तौड़ जाते समय रास्ते में सिध्द भुमि जरगाजी का पहाड़ आया। इस जगह पर विश्राम के लिये बेठे तो उनका मन तपस्या करने वेराग्य भावना प्रकट हुई। गॉव पलासमा में रहने लगे एवं अपनी तपस्या प्रारम्भ की।

प्रभुजी जोशी तपस्या में लग गये और कुछ समय बीत गया। यह पता महारावलको गढ़ चित्तौड़ पर लगा तब महारावल हुजुर श्री समरसिंहजी मेवाड़ विक्रम संवत् 1329 में गाँव- पलासमा में आये आकर के जोशीजी को गढ़ चित्तौड़ में आने के लिए बोला। तब प्रभुजी जोशी ने कहा कि हम यहा ही तपस्या करेंगे और भाई पिताम्बरजी गढ़ चितौड़ पुरोहित का कार्य करेंगे एवं वही रहेंगे। तब महारावल हुजुर श्री समरसिंहजी इस स्थान में मेर मेवासी लोग रहते थे। उनको जरगाजी के जंगल में रावतौड़ा (रावतौड़ा गाँव) बसा करके उन लोगो को वहाँ पर भेजा और यह जमीन पर पुरोहित प्रभुजी जोशी घोडे पर बैठाये और घोड़े को जमीन पर घुमाया तब उस समय घोड़ा 3063 बीघा जमीन पर घुमा। महारावल हुजुर श्री समरसिंहजी ने कुल यह जमीन 3063 बीघा पुरोहित प्रभुजी जोशी को ताम्रपत्र देकर माफी कर दी और गॉव पलासमा स्थापित कर पुरोहित प्रभुजी जोशी को माफीदार कायम किया।

लगातार पेज 2 पर….

उसके बाद प्रभुजी जोशी के जमीन का काम काज व मवेशी के देखभाल के लिये डुंगरी सोलाजी भील को काम काज करने के लिये रखा। पुरोहित प्रभुजी जोशी के दो पत्निया थी। (1) केसरदेवी गाँव-नादवेल श्री पृथ्वीराजजी दवे की पुत्री (2) कवरी देवी, गाँव बडनगर श्री जसराजजी पुरोहित की पुत्री थी। यह परिवार यहा रहने लगा। एक समय प्रभुजी जोशी के जमीन में भील सोलाजी डूंगरी हल चला रहे थे। तब चलाते चलाते समय हल अटक गया तब प्रभुजी जोशी ने आकर देखा तो हल अटका हुआ था। उन्होने हल चलाने की कोशिश कि जब देखा कि हल कढावे के कढे में फसा हुआ देखा उस कढावे को जमीन से बहार निकाला तब उसके अन्दर से 400 सौ सोने की मोहरे निकली तब पुरोहित प्रभुजी जोशी ने गढ़ चित्तौड़ जाकर महारावल समरसिंहजी से अरज किया कि हमको जमीन मे से (400 सौ सोने की मोहरे) धन मिला है सो आपके खजाने में रख लिजिए। यह धन अपने राज्य (देश) के काम आयेगा। तब महारावल समरसिंहजी ने फरमाया कि हमारे यह श्री एकलिंगजी का भण्डार भरपुर है। आपके जमीन मे से निकला धन वह आपका है। आपके काम मे लेना। तब पुरोहित प्रभुजी जोशी कहने लगे कि हमारे यहा मन्दिर बनवाऊगां। तब महारावल समरसिंहजी कहने लगे कि आप इस धन से मन्दिर बनवाना।

 

⁠विक्रम सं. 1332 में मन्दिर का शिलान्यास करके काम शुरू किया। कार्य में लगभग 7 वर्ष का समय लगा। विक्रम सं. 1339 में पाँच मन्दिर बनकर तैयार हुए उस समय कारीगर को एक आना व मजदुर 2 पैसे मजदुरी मिलती थी। मुख्य मन्दिर (1) श्री पद्मनाभजी भगवान (2) श्री लक्ष्मीनारायण (3) कुलदेवी श्री अम्बामाता (4) श्री महासत्ती महादेवजी (5) श्री हनुमानजी का यह पाँच मन्दिर बनकर तैयार हुये थे। फिर बाद में उन मन्दिरों में मुर्तियों के लिये श्री प्रभुजी जोशी तपस्या (ध्यान साधना) में बैठे तब आकाशवाणी हुई कि है भक्त तुम चिन्ता मत करो हमारी मुर्तिया कुछ समय में एक बालद में आयेगी सो तुम मुर्ति स्थापना कर देना। कुछ समय के बाद एक भावा बंजारा 160 बैलों का जत्था साथ लेकर आया। तलाब के किनारे विश्राम स्थल (ढाला का चौकला) पर रूका। उसी रात को प्रभुजी जोशी को संकेत रूप बताया कि हमारी मुर्तिया इस बालद में आई है सो तुम ले लेना श्री प‌द्मनाभभगवान की मूर्ति वह मुर्ति काला बेल काली गुन्ती में काले रंग की मुर्ति है। उस मूर्ति को मुख्य मन्दिर में स्थापित कर देना मुर्ति के चारों तरफ महाविष्णु भगवान के दस अवतारों की छोटी-छोटी मुर्तिया है और बीच (मध्य भाग) में श्री पद्मनाभजी भगवान की मुर्ति है। उस मुर्ति को ले लेना। प्रातः काल होते ही प्रभुजी जोशी तलाब गये वहा जाकर संकेत रूप सपने में देखी हुई गुन्ती के पास जाकर कहने लगे कि इसमें भगवान की मुर्ति है जो मुझे दे दो। तब बन्जारे ने सोचा कि बालद में मूर्ति वो बडी किमती है। यह ब्राह्मण क्या ले सकता है। तब बन्जारे कहने लगा की बाकी मुर्तिया है वह ले लो यह मुर्ति हमारे देने की नही है। तब प्रभुजी जोशी घर पर वापस आये और बन्जारा वहाँ से जाने लगा। तब बालद उसी स्थान पर चिपक गई। बन्जारा आँख से अन्धा हो गया। तो दुसरी रात वही रूका रात्रि में बन्जारे को सपने में कहा कि मेरे लिए मन्दिर यहा बन चुका है। इस मूर्ति को ब्राह्मण को दे देना उसी रात्रि को प्रभुजी जोशी को सपने में कहा कि यह बन्जारा लोभी है। तुम इसको कहना कि इसके बराबर मैं सोना दे दूंगा। तब प्रभुजी जोशी सपने में भगवान को कहने लगे कि इतनी बडी मुर्ति है और मेरे पास सोना नही है। मैं इसके बराबर क्या ढुंगा मेरे पास मेरी धर्मपत्नी के नाक में केवल सोने की नथ है। इसके सिवाय मेरे पास सोना नही है। तब भगवान कहते है कि तेरे पास नथ है वह नथ ही रख देना। उसी के बराबर मुर्ति हो जायेगी।

 
(ढाला का चौकला स्थान पर भावा बन्जारा द्वारा पुरोहित श्री प्रभुजी जोशी को सोने की नथ के फुल बराबर मुर्ति को तोल कर दी थी)
 
⁠प्रातः होते ही प्रभुजी जोशी तलाब पर उसी बालद के पास गये फिर से बंजारे को कहने लगे कि यह मुर्ति मुझे दे दो। तब बंजारे ने कहा कि आप इसके बदले में क्या दोगे प्रभुजी जोशी ने कहा कि मैं इसके बराबर सोना दूंगा। लोभ के वश में बंजारा कहने लगा की यह मुर्ति जमीन से चिपकी बालद है। आप इस मुर्ति को उठाओ तब प्रभुजी जोशी ने केसर, कस्तुरी अन्तर से छिडकाव कर आहवान किया और हाथ फैलाये तब मुर्ति हाथ में आ गई। उस मुर्ति को तोल करने लगे तब प्रभुजी जोशी अपने जेब से सोने की नथ निकाली तब बंजारा एवं सभी लोग हसने लगे। इतनी भारी मुर्ति है और यह इतनी छोटी नथ यह कैसे बराबर हो सकती है। प्रभुजी जोशी ने जैसे मुर्ति के बराबर में नथ रखी तब नथ भारी हुई वह मुर्ति उससे भी हल्की हो गई। तब उस नथ के अन्दर से सोने की रिंग निकाल दी और नथ में लगे फुल बराबर की मुर्ति हुई व दुसरी मुर्तिया भी ले ली।
 
 
(मन्दिर के मुख्य भाग से दाहिने भाग में प्रभुजी जोशी की कुलदेवी श्री अम्बाजी का मन्दिर शिलालेख सहित है।)
 
जोशी प्रभुजी के कुलदेवी श्री अम्बे माँ के मूर्ती पर शिलालेख
 
(मुर्ति के नीचे भाग में शिलालेख मौजूद है)
 
⁠विक्रम सर्वत् 1339 जेष्ठ सुदी सप्तमी को (1) श्री प‌द्मनाभजी भगवान (2) श्री लक्ष्मीनारायण (3) कुलदेवी श्री अम्बामाता (4) श्री महासत्ती महादेवजी (5) श्री हनुमानजी पाँच मन्दिरों की प्राण प्रतिष्ठा करके स्थापना की फिर प्रभुजी जोशी भगवान के मन्दिर में पुजा अर्चना करने लगे प्रातःसमय स्नान करके धोती उडाते सो आसमान में उनकी धोती उधर सुखकर के निचे आती मन्दिर मे पुजा करते समय चीती (नाग) मन्दिर में आकर पाट पर रहता था और जब प्रभुजी जोशी भगवान की आरती करते थे तब वह चीति प्रभुजी जोशी के शरीर पर घुमता था। फिर कुछ समय के बाद प्रभुजी की आयु पुर्ण होने का संकेत
हुआ तब चिन्ता में बैठे थे। तब उनका पुत्र महाकरणजी पुछने लगे कि पिताजी किसकी चिन्ता कर रहे हो तब प्रभुजी जोशी कहने लगे कि हमारे पाँच मन्दिर पूर्ण होकर प्रतिष्ठा हो गई लेकिन मेरे मन में श्री सुर्यनारायणजी का मन्दिर बनवाना बाकी रह गया है। तब उन्होने कहा कि पिताजी आप चिन्ता मत करो आपकी भावना अच्छी है मै भगवान श्री सुर्यनारायणजी का मन्दिर बनवाकर प्राण प्रतिष्ठा करूंगा। आपने पाँच मन्दिर बनवाये है। उससे भी अच्छा काम श्री सुर्य नारायणजी भगवान मन्दिर का कार्य करूंगा। जब तक मन्दिर नही बनेगा तब तक में पंचकेसी धारण करूंगा व पैर में जुते नहीं पहनूंगा और भुमि पर ही सोऊगा यह व्रत रखूंगा। जब तक मन्दिर नही बन जाता। तब प्रभुजी जोशी को विश्वास हुआ कि मन्दिर बन जायेगा फिर कुछ समय बाद श्री सुर्यनारायण भगवान के मन्दिर निर्माण कार्य कर तैयार किया प्राण प्रतिष्ठा करके मुर्ति स्थापना की व मन्दिर में शिलालेख भी लगवाया। पाँचों मन्दिरों मे से भगवान सुर्यनाराणजी के मन्दिर निर्माण कार्य सवाया करवाया (अच्छा) और अपना पंच केसी वृत को तौड़ा। जिसका मन्दिर निर्माण का शीलालेख आज भी मन्दिर में मौजूद है।
 
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Silalekh For Suryanarayanji bhagwan at Shree Padamnath Bhagwan temple Plasma
(महाकरणजी जोशी द्वारा भगवान सुर्यनारायणजी भगवान की स्थापना व मन्दिर में दाहिने भाग में शिलालेख स्थापित किया।)
 
(महाकरणजी जोशी द्वारा भगवान सुर्यनारायणजी भगवान की स्थापना व मन्दिर में दाहिने भाग में शिलालेख स्थापित किया।)
 
⁠एक समय में चोर गायों को चुराकर ले गये तो जोशीजी ने बताया की आपकी गायों को कोई ले गये है तब भगवान से अरज (प्रार्थना) की आप वापिस लेके आओं तब मन्दिर से शक्तीरूपी यौद्धा घुडसवार होकर भगवान निकले और जरगाजी के जगंल में एक शिला पर जाकर भाला रोपा वह स्थान भाला वाली काकर के नाम से आज भी विद्यमान (मौजुद) है और सभी गायों को वापिस लेके आये। उस पत्थर शीला पर गायें निकाली जिसकी खुर (गायों के पैर के निशान) पत्थर में लगी हुई आज भी मौजुद है।
 
⁠विक्रम सवंत 1340 प्रभुजी जोशी श्री इस्टदेव श्री भगवान श्री पद्मनाभजी की भक्ति में लिन होकर जीवित समाधी बड़े धूमधाम के साथ ले ली। वह स्थान आज भी वह स्मारक (वहाँ पर केशर कस्तुरी के रेले दिये वो आज भी दर्शन रूप में मौजुद है।) उनके पुत्र श्री महाकरणजी जोशी यह भगवान की पुजा करने लगे। इस प्रकार महाकरणजी जोशी के पुत्र धनेश्वरजी जोशी उनके पुत्र परमेश्वर जी जोशी इस तरह से पीढी दर पीढी दर परम्परा चलती रही। इसी प्रकार से पलासमा गॉव की स्थापना हुई वो आज भी मन्दिर निर्माण का ऐतिहासिक प्रमाण मौजूद है।
1.⁠ ⁠श्री प्रभुजी जोशी व धर्मपत्नी केसर देवी व पुत्र महाकरणजी जोशी भगवान के चरण व प्रतिमा मुख्य द्वार पर स्थापित है। आज भी मौजूद है।
 
 2.⁠ ⁠श्री प्रभुजी जोशी के पांचों मन्दिरों व सुर्य मन्दिर का शिलालेख मुख्य द्वार पर मौजूद है। प्रभुजी जोशी की मुर्ति के नीचे लगा हुआ है।
 
 3.⁠ ⁠श्री प्रभुजी जोशी की जीवित समाधी स्थल
 
⁠विक्रम सवंत् 1475 में महारावल रायमलजी के समय में गांव नागदा से ब्राह्मण धीराजी आये। उनको मन्दिर में सेवा पुजा के लिये रखा व भगवान को बाल भोग चढाने (धराणे) के लिये जमीन दी नरवर गाँव जाकर वहाँ से एक बडा ढोल लाकर मन्दिर चढाया। उस समय में भील हालुजी दामोजी डुगरी खेती का कार्य करते थे और मन्दिर की चौकीदारी के लिए एक क्षत्रिय को रखा और प्रभुजी जोशी की जीवित समाधी स्थल पर पुजा अर्चना जल चढाने के लिये आमेटा ब्राह्मण को रखा उनको भी जमीन दी। विक्रम सवंत 1500 में महारावलसांगाजी के कार्यकाल में कार्तिक सुदी 6 के दिन गीरी साधु को मन्दिर में साफ सफाई व फुल माला के लिये रखा उनको भी जमीन दी। इन सभी को श्री पद्मनाभजी मन्दिर में सेवा, पुजा, भोग, फुल लाने मन्दिर की साफ-सफाई व रख-रखाव हेतु श्री प्रभुजी जोशी के वशंजों द्वारा 300 बिद्या जमीन डोली हेतु अर्पण की है। वह आज श्री भगवान के नाम से रेकड में दर्ज है। विक्रम सवंत 1600 में एक भाई पितोजी जोशी गाँव केसर (केर) गये वहा पर अपना जीवन यापन शुरू किया। वहाँ पर 96 बीद्या जमीन माफीदार थी उस पर गया परिवार आज भी मौजूद वहाँ पर है।
 
⁠सन 1696 में मुगल साम्राज्य बादशाह औरंगजेब मुगलों द्वारा इस मन्दिर पर आक्रमण किया। उसमें श्री सुर्यनारायण भगवान की मुर्ति खण्डीत कर दी तब भगवान के मन्दिर मे से भंवर (मधुमखियां) ने मुगलों को भगाया। वो भंवरे अभी कुछ वर्षो पहले ही मन्दिर में से गये। श्री सुर्यनारायण भगवानजी की खण्डीत मुर्ति आज भी मन्दिर परिसर में मौजुद है फिर प्रभुजी जोशी के वसंजो द्वारा श्री सुर्यनारायण भगवानजी की दुसरी मुर्ति लाकर जीर्ण प्रतिष्ठा कर स्थापित कि गई जिसकी पुजा अर्चना होती है।
 
सूर्यदेव
 
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 1.⁠ ⁠श्री सुर्यनारायणजी की मुर्ति मुगलों द्वारा खण्डीत की गई उसका चित्र
 
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 2.⁠ ⁠श्री प्रभुजी जोशी के वासनो द्वारा श्री सूर्यनारायणजी की मूर्ति की स्थापना की गई उसका चित्र
वीक्रम सवंत 2040 वैशाखा सुद 6 वार बुधवार दिनांक 18 मई 1983 को सर्व ब्राह्मण समाज से चन्दा कर दण्डी स्वामी 1008 श्री राधाकृष्णजी महाराज के सानिध्य में ब्रह्माजी का मन्दिर बनाकर प्राण प्रतिष्ठा धुम धाम से की गई।
 
⁠विक्रम सवंत 2060 का ज्येष्ठ विद 10 रविवार दिनांक 25 मई 2003 ई. श्री पद्मनाभजी भगवान मन्दिर में श्री कुलदेवी, श्री अम्बामाता जी मन्दिर में नुतन मुर्ति सिंह और श्री पद्मनाभजी मन्दिर तीर्थ स्थापनार्थ श्री प्रभुजी जोशी की जीवित समाधी स्थल छत्री पर कलश, ध्वजा दण्ड, शिवलिंग, नन्दकेश्वरजी का जिर्ण प्रतिष्ठा होकर स्थापित शास्त्री श्री परशुराम पुत्र नाथुलालजी जोशी एवं श्री प्रभुजी जोशी के वशंजो जोशी परिवार द्वारा शुभसमय पर धुमधाम से सम्पन्न होई।
 
श्रीगणेशाय नमः
 
श्री पदम प्रमुतीनम
 
•⁠  ⁠श्री प्रभुजी जोशी की जीवित समाधी स्थल श्री मधु‌नीतीशीषयनाभतीतीर्थ स्थापनार्थ पुरोहितः जी की जीवित समाधी रि मेली श्री.उस पर रात्री का निमार्ण कार्य श्री प्रभुशी परियार लामाद्वारा किया। वि.स.२०६०९ माता मन्दिर ने निह स्थापना समय प्रत किन पर प्रक्रिया आधी
 
(श्री प्रभुजी जोशी की जीवित समाधी स्थल पर प्रभुजी जोशी वसंजों द्वारा जीर्ण प्रतिष्ठा कर स्थापना का शिलालेख मौजुद है।)
 
⁠विक्रम सवंत 2064 दिनांक 06 दिसम्बर 2007 ई. मार्गशीर्ष 12 विद गुरूवार श्री पद्मनाभजी भगवान मन्दिर के दरबार में श्री विष्णु महायज्ञ किया व मन्दिरों के मुख्य मण्डप में श्री गणपतीजी, श्री रामदरबार, श्री राधाकृष्ण, श्री गुरूड़जी, श्री गायत्रीजी, श्री सरस्वती जी, श्री शितला माताजी इन सभी नुतन मुर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा कर स्थापित शास्त्री श्री परशुराम पुत्र नाथुलालजी जोशी पलासमा श्री प्रभुजी जोशी के वशंज के सानिध्य में सम्पन्न हुई है।
 
“हमारा ऐतिहासिक इतिहास हमारा गौरव”
 
•⁠  ⁠श्री पद्मनाभजी मन्दिर का सम्पूर्ण ऐतिहासिक इतिहास निम्नलिखित सबुतों पर आधारित है।
 
 1.⁠ ⁠रावजी का प्राचीन पौथी में इतिहास का विवरण मौजूद है।
 
 2.⁠ ⁠भारत सरकार सेटलमेंट डिवीजन में इतिहास का विवरण मौजुद है।
 
 3.⁠ ⁠प्राचीन राजघराने के चदरा में इतिहास का विवरण मौजूद है।
 
 4.⁠ ⁠कुलदेवी श्री अम्बामाताजी की मुर्ति पर शिलालेख पर इतिहास का विवरण मौजुद है।
 
 5.⁠ ⁠श्री प्रभुजी जोशी के पाँचों मन्दिरों का शिलालेख में विवरण मौजुद है।
 
 6.⁠ ⁠श्री प्रभुजी जोशी के पुत्र महाकरणजी द्वारा सुर्यनारायण मन्दिर लगे शिलालेख में इतिहास का विवरण मौजुद है। इस प्रकार से विभिन्न साक्ष्य एवं सबुतों में श्री प‌द्मनाभजी भगवान मन्दिर निर्माण का इतिहास मौजुद है।
 
-: मुख्य न्यासीः-
 
श्री प्रभुजी जोशी के वंशज समस्त जोशी परिवार श्री परशुरामजी पुत्र श्री नाथुलालजी जोशी
 
गाँव -पलासमा, जिला- उदयपुर (राज.)
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